rajesh asthana

Website'>http://www.quackit.com/html/templates/">Website templates


indus

नित्य समय की आग में जलना, नित्य सिद्ध सच्चा होना है। माँ ने दिया नाम जब कंचन, मुझको और खरा होना है.......!

indus

किसी से नही,एक तुमसे निभाने की खातिर,जली मैं युगों से युगों तककिसी को नही हर किसी शख्स में हैकिया याद तुमको निशा से सुबह तकतुम्ही आदि में हो, तुम्ही अंत मे हो,तुम्ही मंजिलों में तुम्ही पंथ में हो,नही दीखते तुम कहीं भी तो क्या है?खुली आँख में तुम तुम्ही बंद मे हो।किसी को नही एक तुम को,सुमिरने की खातिर जगी मैं युगों से युगों तककहाँ पर मिले थे, कहाँ फिर मिलोगे ?नही याद कुछ भी, नही कुछ पता है।मेरी यात्रा पर कहाँ खत्म होगी,मेरी आत्मा को फक़त ये पता है।किसी से नही एक तुम से ही मिलने की,खातिर चली मैं युगों से युगों तकमेरी आत्मा की करुण चीख सुन कर,कभी तो द्रवित होते होगे वहाँ पर।वहीं से खड़े देखते ही रहोगेया दोगे सहारा कभी मुझको आकरकिसी की नह एक तेरी प्रतीक्षा मेंआँखें लगी हैं, युगों से युगों तक