Shailja Pathak


यादें हमारी निजी थाती होती हैं ...जब चाहें जैसे चाहें उनसे दो चार होते रहें ...एक बड़े आँगन में विलाप की चादर बिछी है लोग छाती कूट कर रो रहे हैं ..हम हिस्सा नही बन पाते ..हम अपने हिस्से का सन्नाटा खंघालतेहैं .. एक खाली कुर्सी पर बैठ बिना वजह हिलते हुए शून्य में एक चेहरा काढते हैं ..जिसकी आँखें इतनी छोटी हैं की आपकी आखों में डूब कर ख़तम हो जाएँ ..वो दावा भी यही था ..रहा तो प्रेम पर बेहतर कवितायेँ लिखूंगा ..गर नही तो यहीं तुम सबकी आँखों में दिलों में मर जाऊँगा की जी जाऊँगा शायद .

.बेवकूफी ही सही पर करने का मन करता है की वापस आ जाते... एक बात करनी है ..एक आखिरी बार तुम्हारी कही टुकड़ो वाली उदासी को समझने के लिए ..पर नही ..जाने के तमाम रास्ते हैं ..वापस लौट आने का कोई भी नही ...उस आखिरी साँस पर तुमसे जुडा हर शख्स एक बार जरुर बेचैन हुआ होगा ..अचानक जलने लगी होंगी आँखें ..परदे हटा कर उजाले को देखा होगा ...एकदम से बेतहाशा पिने लगा होगा ठंठा पानी की कुछ अटक सा गया निगलना है .

.मुझे हमेशा लगा ..बिछड़ने की दस्तक हर प्यार करने वाले के दिलों में होती है ..पर समय रहते हम कभी नही समझ पाते ..दरवाजे के उस पार एक प्यासा है ग्लास भर पानी की खातिर जान से चला गया ...ओह ..तुम्हें छूते हुए जैसे ही गांठों से हमारे हाथ गुजरे हम रुक कर क्यों नही पूछ पाए ...सब ठीक तो हैं ना ??दोस्त प्रेम लिखता हुआ टूट रहा हो ..हर दिन एक नई उदासी से धो रहा हो अपने हाथ ..अपने आँखों में किसी और ही दुनियां का नक्शा बना रहा हो ...बिलकुल हमारे पास से मुस्कराता हुआ उठ कर चला जाये ये कहता .चलो मिलते है फिर ...हमने रोक कर एक बार गले क्यों ना लगा लिया ..अरे रुको अभी कहाँ जा रहे हो ..चलते हैं ना साथ ..

.पर तुमने अपने लिए अपना जाना चुन लिया ..धुआं राख मिट्टी और पानी की किधर होती है शकल ...सब एक हो गये ..ये जीना मरने के बाद का मरना है ...एक आग की जहर में बुझी खबर ..वो नही रहे...काला पड़ता शरीर ..मूक होते शब्द ..सन्नाटे को धुनना खाली कुर्सी पर तेज हिलना ..नही मानने के झूठ में ..आँखों में डूबती एक बेहद छोटी आँख ..नदियाँ ..ज्वार ...बाढ़ ....बिलकुल हरी पत्ती जो लहराती हुई ...नदी की छाती पर सवार ..फिर गोते लगाती सी ...

बस आँख बंद ..और कुछ नही ....एकांत रुदन ..ये मरना मारता है ...

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