इच्छाओं और यथार्थ के बीच के सभी पुल ढहते जा रहे हैं

मेरी
इच्छाओं और यथार्थ के
बीच के सभी पुल ढहते
जा रहे हैं
जैसे किसी फलदार
पेड़ से कच्चे फल
बिन पके ही गिरते
जा रहे हैं
मेरी आकांशाओं के
आसमान धूल धूसरित
होते जा रहे हैं
अब सोचने लगा हूँ
इच्छाओं आकांशाओं के
समुद्र से निकल जाऊं
यथार्थ के रेगिस्तान में
चैन ढूंढ लूं
परमात्मा की हाथों में
स्वयं को सौंप दूं
केवल कर्म में
विश्वास रखूँ

Dr.Rajendra Tela"Nirantar"

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